Do keep a watch on original album (https://www.facebook.com/media/set/…) to appreciate the lyrics and click.
Based on initial feedback, we'll also post a postcard image with words to this album (https://www.facebook.com/media/set/…)
उदास आसमां,
पत्तों की आड़ से,
अपनी मेहबूबा ज़मीं को तकता है,
रुख़सती का सलाम करता है,
अब शहर की जानिब जाना होगा,
दो जून की रोटी कमाने,
न जाने कब फ़िर दीदार हो,
सुना है की शहरों में अब पत्तों के चिलमन नहीं होते,
ऊपर से तकने पर बस ऊँची इमारतें दिखती हैं.
--
अनिरुद्ध (http://पत्तों की आड़ से,
अपनी मेहबूबा ज़मीं को तकता है,
रुख़सती का सलाम करता है,
अब शहर की जानिब जाना होगा,
दो जून की रोटी कमाने,
न जाने कब फ़िर दीदार हो,
सुना है की शहरों में अब पत्तों के चिलमन नहीं होते,
ऊपर से तकने पर बस ऊँची इमारतें दिखती हैं.
--
No comments:
Post a Comment