Monday, April 6, 2015

‪#‎Jugalbandi‬

Do keep a watch on original album (https://www.facebook.com/media/set/…) to appreciate the lyrics and click.
Based on initial feedback, we'll also post a postcard image with words to this album (https://www.facebook.com/media/set/…

उदास आसमां, 
पत्तों की आड़ से,
अपनी मेहबूबा ज़मीं को तकता है,

रुख़सती का सलाम करता है,
अब शहर की जानिब जाना होगा, 
दो जून की रोटी कमाने,
न जाने कब फ़िर दीदार हो,
सुना है की शहरों में अब पत्तों के चिलमन नहीं होते,
ऊपर से तकने पर बस ऊँची इमारतें दिखती हैं.

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अनिरुद्ध (http://annimav.blogspot.com/)2015-04-03_04-09-07

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